पहली बार इंजन वाले रथ पर विराजेंगे भगवान बालाजी https://ift.tt/34chbXk
ऐतिहासिक जशपुर दशहरा महोत्सव के सैकड़ों साल के इतिहास में इस वर्ष पहली बार रावण दहन से पूर्व भगवान बालाजी मंदिर से लकड़ी का रथ नहीं निकलेगा। पहली बार भगवान बालाजी इंजन वाली रथ पर विराजमान होंगे। इस बार भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य श्रद्धालुओं को नहीं मिल पाएगा। साथ ही शोभायात्रा में सिर्फ एक ही रथ शामिल होगा। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए यह निर्णय लिया है।
सरकारी गाइडलाइन के अनुसार दशहरा के दिन रावण दहन कार्यक्रम में 50 लोगों से अधिक की भीड़ नहीं जुटानी है। इस नियम का पालन करने के लिए ही लकड़ी का रथ इस वर्ष नहीं बनाया जा रहा है। भगवान बालाजी मंदिर के पुजारी पंडित मनोज रमाकांत मिश्र ने बताया कि लकड़ी के रथ को खींचने के लिए ही कम से कम 200 लोगों की जरूरत पड़ेगी, जो 50 लोगों की मौजूदगी में संभव नहीं है। इसलिए इस वर्ष मोटर इंजन वाले वाहन को ही रथ का रूप दिया जाएगा और इसी रथ को पवित्रीकरण के बाद इसमें भगवान बालाजी का आसन लगाया जाएगा। भगवान बालाजी को इंजन वाली रथ पर ही विराजित किया जाएगा ताकि रथ खींचने की जरूरत ही ना पड़े।
800 साल पुरानी परंपरा में पहली बार हो रहा ऐसा
पंडित मनोज मिश्र के मुताबिक जशपुर दशहरे की परंपरा 800 साल पुरानी है। इस वर्ष राजपरिवार की 27 वीं पीढ़ी अनुष्ठान कर रही है। इससे पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि भगवान बालाजी मंदिर के लिए लकड़ी का रथ तैयार ना किया गया हो। हर साल शोभायात्रा के लिए लकड़ी का नया रथ बनाया जाता है। छह पहियों वाले इस रथ की उंचाई करीब 25 फीट होती है। रावण दहन के बाद इसी रथ में भगवान बालाजी की आरती होती है और यहीं से राजा द्वारा नीलकंठ पक्षी उड़ाया जाता है।
रथ खींचना श्रद्धालु अपना सौभाग्य समझते हैं
भगवान बालाजी के रथ को खींचने के लिए हर साल होड़ लगती है। हर व्यक्ति एक बार रथ की रस्सी को अवश्य स्पर्श करना चाहता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान बालाजी का रथ खींचकर श्रद्धालु खुद को राम की सेना का सैनिक समझने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। पर इस वर्ष यह सौभाग्य लोगोें को नहीं मिल पाएगा।
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